कहावत तो बड़ी मजेदार है । इसका मतलब यह है कि लोग अपनी औकात से ज्यादा दिखावा करने मे विश्वास करते हैं। ये देशी कहावत उन्ही लोगो के लिए है
सामर्थ्यवान को कोई दोषी नहीं बोलता है क्यूंकी लोग उससे डरते हैं, ठीक वैसे ही जैसे कहा गया है "जिसकी लाठी उसकी भैंस"
अर्थात : जितने की मुर्गी नहीं उतने का मसाला, जब किसी कम फायदे के लिए ज्यादा काम करना। या जब जितना लाभ नहीं उससे ज्यादा लागत लगा देते हैं तो ये लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है।
ऐसा प्रचलित है कि कन्नौज में संगठित परिवार एक साथ कभी नहीं रहते। परिवार में मनमुटाव अथवा अभिमान के कारण लोग अलग-अलग रहते हैं इस कारण से सबका चूल्हा अलग-अलग जलता है, अतः सब अलग जगह भोजन बनाते और खाते हैं। इसलिए 3 कनौजिया 13 चूल्हा अर्थात परिवार तो 3 है मगर चूल्हा 13 जलते हैं।
मतलब ऐसा व्यक्ति जो खुद का काम मजदूरों से करवाता है और दूसरों का काम खुद करता है । ऐसी सोच के लोगो के लिए ये कहावत है।
कहावत तो बड़ी मजेदार है । इसका मतलब यह है कि जिसकी जितनी योग्यता होती है उतना ही उसे मिलता है। अगर कोई तूवरदाल खानेकी योग्यता न रखता हो तो वह मसूर की लालकी अपेक्षा कैसे रख सकता है?
इस मुहावरे का अर्थ है थोड़ी या छोटी चीज को बचाने या ठीक करने के चक्कर में अधिक बड़ा नुकसान कर बैठना। अर्थात - किसी वस्तु की कामना में उससे अधिक मूल्यवान वस्तु को खो देना, इस लोकोक्ति का अर्थ है।
इस मुहावरे का अर्थ है की एक ही घर के एक व्यक्ति से बैर कर बैठना और उसी के सगे संबंधियों से दोस्ती रखना। ये मूर्खतापूर्ण और अज्ञानी लोगो का काम है
इस देशी कहावत का अर्थ है - की सही समय सही वक्त के उठाया गया छोटा कदम भी बड़े काम की चीज है। सही समय पे एक घूसा भी तलवार का काम कर देता है
इस देशी कहावत का अर्थ है - अंदर से बैर रखना और बाहर से मित्र होने का दिखावा करते रहना।
अंधे को अँधेरे में बड़ी दूर की सूझी का अर्थ – अपनी धुन में लगे रहने से मुर्ख व्यक्ति को कोई समझदारी वाली बात सूझना।
ये हमारे उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग जानते होंगे इसका अर्थ । ये कहावत उस व्यक्ति पर लागू होती है जो अंदर से खोखला होता है और बाहर से दिखावा करता रहता है
शौकीन बुढ़िया चटाई का लहँगा लोकोक्ति का अर्थ हैं शौक पूरे करते समय अपनी आर्थिक स्थिति और उम्र की अनदेखी करना।
वैसे तो ये लोकोक्ति का शाब्दिक अर्थ या है पित्रासतात्मक व्यवस्था मे नानी कितना खिलाये प्ल्लए पोता वो दादी का ही कहलाता है , लेकिन वास्तविक अर्थ यह है कभी कभी आप किसी को अपना बनाने की लाख कोशिश कर लें वो आपका नहीं हो सकता या वहाँ पर आपका नाम नहीं होगा इसलिए सोच समझकर प्रयास करें ।
जो काम अपने से बड़े न कर पाएँ उसको करने की डींगे मारना। गाँव देहात मे इसको दूसरी तरह से भी कहते है "बाप न जाने पादना बेटा बजावे शंख"